Sunday, August 8, 2010

ये दुनिया रे दुनिया !!

दुनिया खुशिमे आँख मूद्के
गमके सिमाना करते है पार
चक्र बराबर घुमते है दोनो
गम और खुशिया बेशुमार !
एक दिन लौटके आती है गम
हाल टटोलती फिर उनके द्वार
भूल जाते है वो दिन फिर
रहते है मानकर अपनी हार !
इसलिए,
कहता हुं साजन बाँट लो अपनी
खुशियाँ सबसे, उनकी थामे गम
समतामे समाई हुइ है सागर
सोच लो वैसे हि रह सके हम !

No comments:

Post a Comment